पहले हम लोग गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में किराठकी छोटी साईकिल लेते थे, अधिकांस लाल रंग की होती थी जिसमें पीछे कैरियर नहीं होता। जिससे आप किसी को डबल न बैठाकर घूमे। à¤à¤• साईकिल वाले ने तो पिछले मडगारà¥à¤¡ पर धारदार नà¥à¤•ीले कीले तक लगवा दिठथे किराया शायद 50 पैसे पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटा होता था किराया पहले लगता था ओर दà¥à¤•ानदार नाम पता नोट कर लेता थाा
किराये के नियम कड़े होते थे .. जैसे की हवाई जहाज लेना हो। पंचर होने पर सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ के पैसे, टूट फूट होने पर आप की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€, खैर ! हम खटारा छोटी सी किराठकी साईकिल पर सवार उन गलियों के यà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ होते थेा थे, पूरी ताकत से पैड़ल मारते, कà¤à¥€ हाथ छोड़कर चलाते ओर बैलेंस करते, तो कà¤à¥€ गिरकर उठते और फिर चल देतेा
अपनी गली में आकर सारे दोसà¥à¤¤, बारी बारी से, साईकिल चलाने मांगते किराये की टाइम की लिमिट न निकल जाà¤, इसलिठतीन-चार बार साइकिल लेकर दूकान के सामने से निकलते।
तब किराठपर साइकिल लेना ही अपनी रईसी होती। खà¥à¤¦ की अपनी छोटी साइकिल रखने वाले तब रईसी à¤à¤¾à¥œà¤¤à¥‡à¥¤ वैसे हमारे घरों में बड़ी काली साइकिलें ही होती थी। जिसे सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से उतारने और लगाने में पसीने छूट जाते। जिसे हाथ में लेकर दौड़ते, तो à¤à¤• पैड़ल पर पैर जमाकर बैलेंस करते।
à¤à¤¸à¤¾ करके फिर कैंची चलाना सीखें। बाद में डंडे को पार करने का कीरà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ बनाया, इसके बाद सीट तक पहà¥à¤‚चने का सफर à¤à¤• नई ऊंचाई था। फिर सिंगल, डबल, हाथ छोड़कर, कैरियर पर बैठकर साइकिल के खेल किà¤à¥¤ ख़ैर जिंदगी की साइकिल अà¤à¥€ à¤à¥€ चल रही है। बस वो दौर वो आनंद नही है।
कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कोई माने न माने पर जवानी से कहीं अचà¥à¤›à¤¾ वो खूबसूरत बचपन ही हà¥à¤† करता था साहब.. जिसमें दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥€ की जगह सिरà¥à¤« à¤à¤• कटà¥à¤Ÿà¥€ हà¥à¤† करती थी और सिरà¥à¤« दो उंगलिया जà¥à¤¡à¤¨à¥‡ से दोसà¥à¤¤à¥€ फिर शà¥à¤°à¥‚ हो जाया करती थी। अंततः बचपन à¤à¤• बार निकल जाने पर सिरà¥à¤« यादें ही शेष रह जाती है और रह रह कर याद आकर सताती है।
आजकल पेड़ पर लटके हà¥à¤ आम à¤à¥€ अपनेआप ही गिरने लगे है।
सà¥à¤¨à¤¾ है आज के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का बचपन तो à¤à¤• मोबाईल ने चà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤
ऊपर दिया गया संदरà¥à¤ कॉपी पेसà¥à¤Ÿ है और इसके ओरिजिनल लेखक का पता नही है